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क्या है आज के अखबार में - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

क्या है आज के अखबार में

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क्या है आज के अखबार में
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क्या है आज के अखबार में
कुछ बड़े लोगों के बयान
उनके और उनके पुरखों का गुणगान |
कुछ समयातीत हो गयी दलीलें |
कुछ लोगों की झूठी शान |
यही रोज की चर्चा का विषय है |
कुछ हत्या की हादसे ,कुछ राहजनी की कहानी
उन अपराधियों के नाम
जिनपर सत्ता का वरदहश्त खत्म हो गया हो
या उनकी चोरी के किस्से
जिनकी जेब के पैसे खत्म हो गए हों |
कुछ सरकारी फरमान
कुछ लिखनेवालों के अरमान
बस नहीं होती तो आम लोगों की बातें
उनके समस्याओं के लिए जिम्मेवार लोगों की मुलाकातें
उनके नाम कभी नहीं आते जो
जनता के पैसे , और विश्वास को लूटकर
महलों में ऱहते हैं ,दरवाजे पर संतरियों को लगाकर
लूट ले जाते हैं जनता के खून पसीने कमाई
ऊँची बोली लगाकर |
फिर वापस नहीं मिलता
चक्कर लगाती रह जाती है जनता उनके कार्यालयों का
पर नहीं मिलते पैसे देनेवाले
उन्होंने लाइसेंस ले रखा है ,लूटने का
कानून का सहारा है ,
उनके आगे अखबार भी शायद बेचारा है |
कोई क्यों मरता है इसकी खोजखबर कौन लेता है
बस छपती है पोस्टमार्टम की खबरें
समस्याओं का पोस्टमार्टम नहीं छपता
जान क्यों जा रही है कोई नहीं पूछता
बस जान चली जाती है तब खबर बन जाती है
कुछ फूलों के किस्से ,कुछ भँवरों की कहानियाँ
यही छपते हैं किस्से ,बस इनकी ही हैं निशानियाँ
न मुझसे मतलब ,न मेरे सरोकार की बाते
क्या करूँ पढ़कर इंद्र और मेनका की मुलाकातें
मेरी समस्या मेरी है अखबार तो बस तेरी है
क्यूँ पढूँ वे किस्से जो पढ़कर लगे दुनियाँ अँधेरी है |

कृष्ण तवक्या सिंह
17.09.2020

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