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सौतन ( फॉर वैथ) - Beena Phulera (Sahitya Arpan)

कहानीऐतिहासिक

सौतन ( फॉर वैथ)

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  • 15 Min Read

आंगन में बहुत सारे लोगों को एक साथ आते देखकर भारती अपने सिर के पल्लू को रोकती बच्चे को गोद में लेकर छटते बादल की तरह अंदर की ओर चली गयी।
कई लोगो के बूटों की आवाज से वह तनिक घबड़ाई दरवाजे के पीछे से झांकने का प्रयास कर रही थी तभी बिजली की तरह कड़कती आवाज में भरत ने कहाँ ...
अरे भारती सुनती हो मेहमान आये हैं जरा गरम अदरक की चाय बनाओ केतली में.. ,जी..., कहती भारती बच्चें को खिड़की के सहारे खड़े कर खुद चाय बनाने लगी ।
ध्यान बाधित होने से हाथ से दूध गिर गया था ।
चाय की ट्रे हाथ मे पकड़ी भारती दूध गिरने से किसी अनहोनी की आशंका में आँगन में पहुँची सभी को अभिवादन के बाद पति भरत ने आगन्तुको से परिचय कराया । भारती ये हैं मिस्टर कलेवर आप हैं थीफ़ ये बास्टर्ड ये इडियट ये मिस्टर बैंडिट ये इनकी दोस्त फॉर वेथ हैं और फ्रेड ....ये हैं हमारी धर्मपत्नी भारती .. सौम्य, शील, संस्कार, सभ्यता ,की साकार प्रतिमूर्ति भारती को इसमें से ना कोई नाम याद हुआ नही कोई अच्छा लगा ।
खैर भारती बैथ को अंदर ले जाओ ये हमारी खास मेहमान हैं भरत ने अपनी पत्नी को आदेशित किया ।जी कहती भारती ने चाय के कप उठा लिए जो अब खाली थे उसका ध्यान बैथ की भेषभूषा पर था अचानक एक कप हाथ से टूट कर गिर गया ।फिर भारती के मन मे कोई विचार घूमने लगा, आओ बहन कहती भारती बैथ को अंदर ले गयी जहाँ बैथ पास की चारपाई में पसर गयी
भारती ने शालीनता से उसके जूते पायदान से बाहर उतरवाए फिर उसे चौकी में बैठने को आसन बिछा दिया
तभी भारती के बेटे विकास ने आकर बैथ के पाव छू लिए ।बैथ उसे देख कर मुस्करा दी ।धीरे धीरे उसके मन मे यही बसने का लालच उतपन्न होने लगा उधर भरत को अपने कामो से फुर्सत नही थी धीरे धीरे दोस्ती की प्रगाढ़ता गहरी होती गयी , भारती इन सब बातों से अनभिज्ञ थी अब विकास की शिक्षा दीक्षा का स्वतंत्र प्रभार वेथ के हाथों में था।बैथ ने सम्पूर्ण योजना केअनुसार ऐसी शैक्षिक योजनाएं तैयार कर दी जिसमे प्रत्येक व्यक्ति डूबता गया, तब तक जब तक उसका सिर पटल पर नही टकराया बेचारी भारती लहूलुहान विकास की ओर ताकती , अब विकास भी वेथ के रंग खान पान भेष भूषा व वाणी में रंग गया था उधर भरत को भी यह याद नही रहा कि जिस बुनियाद पर मैं खड़ा हूँ उसे कोई जड़ों से कुतर चुका हैं चारों ओर गुलामी की तरह जकड़ा भरत आज खुद को लाचार महसूस करने लगा था ,जबकिं थीफ़ ने उसकी सारी संपत्ति चुरा ली थी बास्टर्ड अपना अधिकार जमाने लगा कलेवर ने ये सारा खेल खेला था भरत के साथ भारती का संसार डूब रहा था माँ को दयनीय अपमानित दशा में देखकर जब विकास की आँखे खुली उसने सभी मेहमानों को अपने घर से सामान के साथ बाहर खदेड़ दिया ,परंतु बैथ कही नजर नही आ रही थी आती भी कैसे वह भरत के कंधे में अपनी बांहे डाले वियर की चुस्कियां ले रही थी तभी भारती हाथों में दो कप गरम चाय लिए लॉन की ओर बढ़ी उसकी नजर धुंधली शाम की मंदिम रोशनी में डूबे बैथ पर पड़ी जो हिंदी फ़िल्म सौतन की नायिका की तरह
भरत के होठों को मदिरा पान करा रही थी ।आखो से निकले गरम आँसू टप्प से चाय की प्याली में गिर पड़े और फिर एक कप टूट गया, बह गई गरम चाय, भारती के हाँथो से बैथ की ओर लुढ़कते आँसूओ के सैलाब में सिमट गए काले बादल भारती. की गोद में ...... .......
अब कही दूर अमावश का तारा उसे घेर रहा था ...
तभी विकास ने चाय के कप के साथ माँ को गोंद में उठाते हुए कहा माँ आओ लाँ न में बैठ कर चाय पीते हैं देखो एक तारा टूट रहा हैं सगुन होता हैं कुछ मन्नत मांगते हैं फिर से ....

बीना फूलेरा
नैनीताल

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

बहुत भावपूर्ण स्रजन..!

दादी की परी
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