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हसरतों के पगडंडियों पर बढ़ने लगा हूं..... - मदन मोहन" मैत्रेय (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

हसरतों के पगडंडियों पर बढ़ने लगा हूं.....

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हसरतों के पगडंडियों पे बढ़ने लगा हूं,
मासूम खयालात को अब गढ़ने लगा हूं,
लगी हैं मजलिसें इश्क जिंदगी के सफर में,
उभर आया हैं तेरा अक्स पिया मेरी नजर में,
बयां कर रहा हूं ख्वाहिश जगा हैं जो तेरे लिए,
बंद हुई पलकों में देखे सपने, संग फेरे लिए।।


तू जो मन की गहराइयों उतर सी गई हैं,
मैं हृदय के कैनवास पर उकेरूं छवि तेरा,
तू मेरा हम-सफर, सुन ले जरा बालमा,
यादों के झरोखे से तू ही झांकती हो जालिमा,
उभर आती हो बरबस खयालों में घेरे लिए,
चाहतों का रंग बादली, तू बनी मेरे लिए।।


मुहब्बत की जमीं पर बागबां बनने को बेताब हूं,
चाहत की सजी हुई महफिल, तेरा तलबगार हूं,
तू माने न माने बालमा, हां हम-सफर यार हूं,
दिल की गली में हलचल, देखूँ तुझे झरोखे पे,
यादें जो तेरी, बस गई हैं तू दिल में डेरे लिए,
तुम्हें देखता रहूं भर-नजर, तू बनी जो मेरे लिए।।



तेरे इन रेशमी गेसुओं को संवारूँ इतमीनान से,
ओ बालमा बन जा तू माहताब मेरे हसरतों की,
सजाऊँ तेरी तस्वीर को बड़ी हसरतों से ख्वाब में,
लिखे तुमने पाती, रखा हैं मैंने दिल के किताब में,
और फिर तेरी यादों का काफिला आए बेड़े लिए,
तू पिया मासूम गुलाब सी, बनी हो बस मेरे लिए।।



बा-बस्ता तुम्हीं से हैं, पाले हुए हूं तेरे लिए चाहतें,
उभड़े हुए हसरतों की पगडंडियों में बढ़ाते हुए कदम,
प्यासे नैना ढ़ूंढ़ें तुम्हें मिल जाओ कहीं तो सनम,
तेरे लिए सजदा करूं, हो जाए पिया तेरा रहम,
भले तू अंजान हैं, दिल धड़के मेरा तेरे लिए,
बंद हुई पलकों में सपने, संग तेरे फेरे लिए।।

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