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कविताअतुकांत कविता
ले आए तुम प्रेम प्रस्ताव, क्या इसमें है बाँधने का स्वभाव? क्या आज़ादी की चिंगारी है? या तुम्हारी भीतर रहने की लाचारी? यह बात यहीं साफ कर दो, या फिर मुझे माफ कर दो।