कवितालयबद्ध कविता
ये मिट्टी,
कुछ इसे खरीद लेते है,
ये मिट्टी,
कुछ इसे बेच देते है,
कही लालच मिट्टी का,
कही मिट्टी की इज्जत है,
पर पता है
ये मिट्टी,
कुछ इसे खरीद लेते है,
मिट्टी में ही तो,
इतने बङे हुये,
फिर बिन मिट्टी,
जीवन कहाँ चला है,
और अन्त भी इस मिट्टी में,
फिर....
ये मिट्टी,
कुछ इसे खरीद लेते है,
कुछ मिट्टी की खातिर ,
अपनी जान,
न्योछावर कर देते है,
कुछ मिट्टी की खातिर,
किसी की जान,
ले लेते है,
मिट्टी ही तो जोङे,
रखती है,
हमें....
ये मिट्टी,
कुछ इसे खरीद लेते है,
पर बात मिट्टी की ,
बिन मिट्टी कविता,
अधूरी सी है,
रंग हो अनेक,
इस मिट्टी के,
पर....
ये मिट्टी,
कुछ इसे खरीद लेते है,