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यादें - Dipak Kumar (Sahitya Arpan)

कवितागजल

यादें

  • 18
  • 3 Min Read

अस्को के बहते धारे
कहते है ज़ख्म सारे
ग़म ए दरिया सामने है
दिखते नहीं किनारे
अश्को के बहते …

सब कुछ लुटा हमारा
आँखों के सामने
आगे न आया
कोई
मेरा हाँथ थामने
अपना था समझा जिनको
वो न हुए हमारे
अश्को के बहते …

हमने है देखीअपने
अरमानो की चिताएं
दिल किस क़दर जला है
भला कैसे हम बताए
ख़ुशी हम भला क्या जाने
नाते, ग़मो से सारे
अश्को के बहते …

पहलू में जाते किसके
फरियाद ही क्या करते
ग़म ही था अपना साथी
किसे याद और करते
जब बुझ गए हो अपने
उम्मीद के सितारे
अश्को के बहते …

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