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कसक - Dipak Kumar (Sahitya Arpan)

कवितागजल

कसक

  • 18
  • 4 Min Read

जिस पल तुम मुझसे बिछड़ोगी
वह छण अंतिम मेरा होगा
कोई और जगह मै क्यों खोजू
बस कब्र ही घर मेरा होगा
जिस पल तुम—–

मेरी आस की डोर बंधी तुमसे
मेरी प्रीत प्रिये तेरे खातिर
यह जीवन हो तेरे क़ाबिल तो
यह तुच्छ भेट है लो हाज़िर
जब तुम ही नहीं इस जीवन में
इस जीवन का फिर क्या होगा
जिस पल तुम——

सिन्दूर से कोई मांग भरे
मै कैसे सहन कर पाउँगा
कोई छुए तुम्हरा तन कोमल
मै जीते जी मर जाऊंगा
तुम रात गुज़ारो गैर संग
मन मेरा क्यों न व्यथित होगा
जिस पल तुम—–

गुज़रोगी संग सजन के जब
बाहों में बाहे डाल प्रिये
दिल अंदर से व्याकुल होगा
होगी झूठी मुस्कान प्रिये
दर्द भला क्या बयां करूँगा
निशब्द मेरा यह मुख होगा

जिस पल तुम मुझसे बिछड़ोगी
वह छण अंतिम मेरा होगा –

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