लेखआलेख
दर्द...
एक दिन दर्द ने दस्तक दी.... किसी गरीब मजदूर के घर.... उसने कहा! "अभी बहुतों के दर्द को कम करना है। अभी अपने दर्द को महसूस करने का समय नहीं.... मेरे पास।" अगर मैं बैठ गई अपने दर्द को लेकर.... तो उनका क्या होगा? जो मेरी आस लगाए बैठे हैं फिर दर्द से तो बड़ा कमबख्त ये भूख है। उसे कैसे शांत करूँ।
नहीं-नहीं! अभी वक्त नहीं दर्द से कहराने का....अभी तो जीने के लिए अन्न जुटाना है, तुम अभी जाओ.... रात में आना। तभी मैं घर पर ही रहती हूँ। सिर्फ तभी मैं अपने दर्द के बारे में सोच सकती हूँ। फिर सुबह चले जाना।
अभी पैरों के छाले ठीक करने का समय नहीं है....मेरे पास। यह तो बस थोड़ी- सी खरोच है। जाना तो पड़ेगा ही, नहीं तो दो वक्त की रोटी.... कौन देगा?
"जीवन गम का भंडार है, तो हिम्मत उसकी नैया।....जो पार लगाती ही देतीं है....जीवन रूपी नैया को ।"
दर्द के साथ कैसे जीते हैं कोई उन बेबस गरीबों से पूछो। जिनके पास समय ही नहीं होता, दर्द से कहराने के लिए या फिर कहे दर्द को महसूस करने के लिए।
जिनका जीवन ही.... दर्द ,भूख और तंगी में बीतता है।......प्रणाम है उन सभी मजदूरो को....जो हमारी मदद करते हैं....जिनके मेहनत के आगे चंद पैसे... कुछ भी नहीं है....!!!
@champa यादव
21/9/20