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कविताअन्य
ज़मीं पर बैठ कर चाँद को तकते रहे । हम इश्क़ में..... यूँ ही हाथ मलते रहे ।। जिस राह पर थी दुश्वारियां और ग़म । हम आख़िर तक उसी पर चलते रहे ।। ©डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर ©काज़ी की क़लम