कवितालयबद्ध कविता
मैं तो भर बैठा था उसको आंख में
अश्रु की इक धार में वो बह गई
ज़हन से तो मैं भुला बैठा उसे
मेरे मन की मायूसी में रह गई
मखमली तेरे कपोलों की कसम
स्वाद मधु का अब मुझे भाता नहीं
सच तो है जब फूल से लिपटे कोई
शूल से बच के कोई आता नहीं
तेरे बिन तो ये धरा निस्सार है
मेरे कानों में खुशी ये कह गई
मैं तो भर बैठा था उसको आंख में
अश्रु की इक धार में वो बह गई
✍️ डॉ उपवन 'उजाला'
उदयपुर, राजस्थान
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