कवितालयबद्ध कविता
तसल्ली...
अरे ! आतंकी हमला हुआ है..
कहीं जम्मू में तो नहीं???
हां ,हां ,जम्मू में ही ....
कहीं कोई शहीद तो नहीं???
हां, तेईस जवान हुएं ....
कहीं उनमें मेरा लाल तो नही???
हां सातवां नाम उसी का है...
अब "लाश" मिले तो तसल्ली हो ...
अरे! सुना है बम विस्फोट हुआ था..
बस "लाश" मिल जाए कम से कम...
नहीं ,लाशें क्षत - विक्षत सी हैं...
कैसी भी मिल जाए कम से कम...
हां, कुछ लाशें लापता भी हैं...
मेरे लाल की मिल जाए कम से कम ...
तुम्हारा बेटा एकदम सामने था...
ओह!!! समझ गया...लेकिन...
एक टुकड़ा मिल जाए कम से कम..
हमें क्षमा कर दो भाई🙏🙏
कोई निशानी दे दो कम से कम...
सब कुछ तितर बितर सा है...
वर्दी ही दे दो कम से कम...
वर्दियां रेशों सी हो चुकी...
काड़ा ही दे दो कम से कम...
हां...शायद इस तलाशी में,
काड़े तो मिल ही जायेंगे...
जो नाम गुदा हुआ होगा तो..
परिवार को सौंपे जायेंगे ...
अब अंतिम संस्कार भी ...
मात्र एक रसम होगी...
बिना "लाश" जलाए ही ...
अब गांव में तेरही होगी....
सुन सकता हूं वो आवाज़ ...
जब नब्ज़ तेरी जली होगी ...
ना सूरत ,ना बोली ,ना वर्दी ...
तेरे काड़े से ही "तसल्ली" होगी...