कविताअतुकांत कविता
हिन्दी
-------
मैं लिखता हूँ हिन्दी में
एतराज नहीं अगर तुम पढ़ सको इसे सिंधी में
प्यार है मुझे अपनी भाषा से
पर नफरत भी नहीं तुम्हारी जिज्ञासा से
मेरी तो यही मातृभाषा है
किसी की कोई और होगी
तौर तरीके लिखने के कुछ अलग होंगे
बदलते अक्षरों पर मौर होंगे |
ललकार नहीं ,तकरार नहीं
किसी से प्रतिस्पर्द्धा का विचार नहीं
किसी के ऊपर चढ़कर जीना
मिला ऐसा संस्कार नहीं |
दुरूह राहों को पारकर
सरल मार्ग को तलाशा है |
कई प्रतिभाओं को इन शब्दों को तराशा है
पत्थरों को तोड़कर नया मार्ग बनाया है
हर किसी की समझ में आ जाए
इस तरह शब्दों को सजाया है |
विकास की सीढ़ियाँ चढ़नी नहीं छोड़ी हमने
हर नये अनुसंधान को अपने में समाया है
हर किसी के जुबान पर चढ़ सके
ऐसा स्वाद में इसे पकाया है |
धर्म ही नहीं ,विज्ञान को भी हमने अपनाया
दर्शन शास्त्र के पन्नों पर भी अपना पसीना बहाया है
इतिहास ही नहीं ,भविष्य को भी जाना है |
हिन्दी ने सबको माना है |
किसी का तिरस्कार नहीं ,हर भाषा प्यारी है |
पर यह कहते भी शरम नहीं कि हिंदी ही भाषा हमारी है |
कृष्ण तवक्या सिंह
14.09.2020