कवितालयबद्ध कविता
सूखी डाली
सूखी डाली पर आती नहीं हरियाली
फूल नहीं खिलता, आता नहीं कली
वो रहता है वीरान और खाली
कोई नहीं करता है उसका रखवाली
जब उसने देखा हरी डाली
उसकी रौनक और खुशहाली
कोसा किस्मत, क्यों हम है खाली
फिर याद कि अपनी हरियाली
फिर सोचा परिवर्तन है अखण्ड नियम जीवन में
जो खिलता है, वो मुरझाता भी है वन में
कोई नहीं स्थाई इस जीवन में
फिर क्यों शिकवा गिला रखें मन में
एक सूखी डाली की छाया
कभी किसी के न काम आया
सूखी डाली का बस एक ही काम
वो सिर्फ जलने के काम आया
सोच के ये मुस्कुराया सूखी डाली
जीवन मेरा न गया पूरा खाली
जीते जी किसी के काम न आया
जल कर किसी की जरुरत की आग बुझा डाली