कविताअन्य
द्वंद
ना करें किसी से उम्मीद, ये है मस्तिष्क कहता
हृदय का करें क्या, ये कुछ आस है लगाता
लोगों से इतना ही मिलो, काम भी हो रिश्ता भी निभ जाए
जब काम न हो, दिल चाहता है चार बात किसी से की जाए
दिमाग कहता है आत्मनिर्भर हो करूं जीवन निर्वाह
किंतु हृदय की हसरत है, करे कोई थोड़ी मेरी भी परवाह
मानना है मस्तिष्क का हमें किसी और की जरुरत नहीं
खुशी गम बांटू, मिले दिल को कोई साथी यूं भी
कोई मिले, कोई बिछड़े, फर्क नहीं, ये दिमाग का है गुरुर
दिल के अरमां है, कोई खोने से डरे जब हम हो दूर
आदेश है चलते रहें बस, कैसी भी हो जीवन डगर
दिल की उम्मीद है, मिले राहों में कोई हमसफर
मस्तिष्क का फरमान, हिमालय सा आन, बस अपनी विजय
दिल चहता है थोड़ा विनम्रता, भावना और अपनों की जय
मस्तिष्क की सुनते रहे, बढ़ जाता है अहंकार
दिल की सुनता जाऊं, दिल से, दिल में मिलता प्यार
जब तक है ये जीवन, तब तक है ये द्वंद
कभी कभी रुकता है, एक दूजे पर हावी, सदा नहीं होता बंद
माने गर हमेशा दिमाग की, छोटी छोटी खुशियों से होंगे मरहूम
दिल की राहों में मिलता है, कुछ पीड़ा और कुछ सुकून
जीवन नहीं चलेगा, गर रास्ता अपनाया जाए कोई एक
हमें चलना होगा उस पथ पर, जो हो सम्यक