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Sahitya Arpan - Poonam Nagpal
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Poonam Nagpal

'Poonam'

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    कविता घनाक्षरी Third

    कहानीप्रेरणादायक, लघुकथा

    खाली स्थान ।

    • Added 11 months ago
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    • 107
    • 6 Mins Read

    चलो आज एक कहानी सुनाती हूँ ।

    शीर्षक - खाली स्थान ।
    एक बार एक पौधा था । वह धीरे - धीरे मेहनत करके , जमीन से पोषण लेकर बढ़ रहा था । इसी दौरान उसके नये और छोटे - छोटे टहनियां और पत्ते उगने लगे । उन्हें
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    खाली स्थान ।,<span>प्रेरणादायक</span>, <span>लघुकथा</span>
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    कविताघनाक्षरी

    मन की आवाज

    • Added 1 year ago
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    • 125
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    शीर्षक - मन की आवाज

    इतनी मजबूर क्यो हूँ मै ?
    खुद से इतनी , दूर क्यो ह हूँ मै ?
    इतनी चूर क्यो हूँ मै ?
    क्या सवेरा हूँ मै ?
    या बसेरा हूँ मै ।
    ये आवाज सनसनी तो नही ,
    ये मुस्कान मेरी अपनी तो नही ,
    महसूस हो तो
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    मन की आवाज,<span>घनाक्षरी</span>
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    कविताअन्य

    लेखक की कलम

    • Added 1 year ago
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    • 122
    • 3 Mins Read

    शीर्षक:- लेखक की कलम

    जहाँ रोशनी ना पहुंचे नीरज की,
    पहुंच जाती है कलम लेखक की ।
    शब्दो के आसमान पर , लफ्जो को बयां कर देती है ,
    मुर्द मे जान फूक दे , नया कर देती है ।
    ख्वाबो के सहारे , वास्तिकता बता देती
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    लेखक की कलम,<span>अन्य</span>
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    कवितालयबद्ध कविता

    कुछ शब्द

    • Added 1 year ago
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    • 52
    • 2 Mins Read

    शीर्षक:- कुछ शब्द
    कुछ शब्द बिना कहे ही समझ जाते,
    तो कुछ कहने पर भी नही;
    कुछ महसूस कर लेते हो तो ,
    कुछ समझते बहाने से भी नही;
    इतनी ती निशब्द भी नही मेरी जुबान;
    आखिर हूँ तो मै भी इन्सान;
    मुझे भी ज्ञान
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    कुछ शब्द,<span>लयबद्ध कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    ऑंसू

    • Added 1 year ago
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    • 165
    • 2 Mins Read

    शीर्षक:- आसू
    भर जाता है दिल जब दर्द से; बह जाते ये आँखो से,
    कभी चोट लगने पर तो कभी , केवल बातों से ,
    अन्य परिस्थितियों में झन्हे ती बस बहाना चाहिए बहने का;
    लेकिन कौन बताए, जुडे होते है ये सासों से;
    चला
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    ऑंसू,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता, घनाक्षरी

    क्या कर रही हूं मैं?

    • Added 1 year ago
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    • 117
    • 3 Mins Read

    क्या कर रही हूँ मैं?

    रोज के अंधेरे में खोती खा रही हूँ मैं;
    पहचान नही पा रही ,क्या वही हूँ मैं?
    रुख मेरा किस ओर है? न जाने मंजिल कितनी दूर है ?
    चली जा रही हूँ मैं देखे बिना कही ओर;
    चुभ रहा है मुझे ये शोर;
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    क्या कर रही हूं मैं?,<span>अतुकांत कविता</span>, <span>घनाक्षरी</span>
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