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Section | Genre | Rank |
---|---|---|
कविता | बाल कविता | |
कविता | सोरठा | |
सुविचार | अनमोल विचार | 4th |
कविता | नज़्म | 5th |
सुविचार | प्रेरक विचार | 5th |
London is the capital city of England.
कविताबाल कविता
विषय- बचपन की बातें
शीर्षक- झूले संग मुलाकातें
विधा-कविता
बचपन की बातें
बचपन की रातें
याद आती हैं झूले संग हुईं मुलाकातें
मां तेरी गोद का स्पर्श
झूले में डालते ही तेरे हाथों की थपथपाहट
कानों में
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कविताअतुकांत कविता
विषय- मेरे ये पंख
इठलाते से बलखाते से
मेरे ये पंख क्यों सब को
चुभने से लगें हैं मेरे ये पंख
अभी, अभी, होश में तो आईं थीं मैं
दीवारों से टकरा कर संभल पाईं थीं मैं
अपनी ख़ामोशी को बड़ी मुश्किल से तोड़
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कविताबाल कविता
चांद का खिलौना
आ बेटा तुझे आज़ मैं बाहों में झूला लूं
चांद का आज़ तुझे खिलौना दिला दूं मैं
आसमां में ये यों गोल मटोल चांद तुझे रिझाता हैं
मन ही मन में उसे पाने की ख्वाहिश सी जगाता है
पालने में सुला
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कविताअतुकांत कविता
शीर्षक- भ्रम स्त्री का
विधा-कविता
कल तक था जिस स्त्री को
ख़ुद पर भ्रम
समाज में कुछ ना कर पाएंगी स्त्री
आज़ उस भ्रम को बेड़ियों में जकडे बैठी स्त्री
लाज की ओढ़नी में ख़ुद को संभाले स्त्री
मर्दों के
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कविताअन्य
मिट्टी की तरह
मिट्टी की तरह
तन मिट्टी में मिल जायेगा
क्या तेरा क्या मेरा
सब मिट्टी हो जायेगा
इक सफ़र तैय करने आए हैं
सफ़र तैय कर के चले जाना हैं
मिट्टी की तरह
तन मिट्टी में मिल जायेगा
पल भर ना भरोसा
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कवितागजल
ऐ चांद ठहर जा
ऐ चांद ठहर जा
तुझे आंखों में तो भर लूं
तेरी जगमगाहट को
महसूस तो कर लूं
दिन भर की थकान को
ज़रा सा दूर तो कर लूं
ऐ चांद ठहर जा
तेरे रुबरु ख़ुद को
ज़रा सा महसूस तो कर लूं
रात के गलियारे से
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कवितानज़्म
हैं कोई बात
तेरे मेरे दरमियान
जो दोनों को आपस में जोड़ती हैं
तुझे मेरी ओर मुझे तेरी ओर खींचती हैं
गुजारें थे जो पल तेरे साथ उन पलों को फिर से
गुज़ारिश सी हो रही हैं
हैं कोई बात
तेरे मेरे दरमियान
जो
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कवितानज़्म
नज़दीक होकर भी
अब तो घुटन सी होने लगी है
अब तो साथ होकर भी हर पल दम सा घुटने लगा है
इतनी दूरियों के पीछे अब तो
तेरे मेरे दरमियान बचा क्या है
नज़दीक होकर भी
जिन खुशियों को तेरे संग तराशने निकलें थे
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सुविचारअनमोल विचार
सर्दी की बर्फ और तुम
तुम और मैं
बस तुम और मैं
दुनिया से कहीं दूर होते
बर्फ की चादर को ओढ़ लेते
सर्दी की बर्फ और तुम
__prabha Issar
कहानीलघुकथा
पिता और बेटा
जिस पिता ने बेटे को उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
पीठ पर बिठा कर जन्नत सा एहसास करवाया
गिरने से जिस पिता ने बेटे को हमेशा बचाया
आज उन बूढ़ी आंखों का सहारा बनने से बेटा क्यों कतराया
क्यों
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कविताबाल कविता
मेरा ओर तुम्हारा रिश्ता मां
जैसे मिट्टी का पानी से
जैसे समंदर का गहराई से
जैसे दुःख का सुख से
मेरा ओर तुम्हारा रिश्ता
जैसे फूलों का कलियों से
जैसे सांसों का धड़कनों से
जैसे रोती हुई आंखों से
हंसी
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कहानीसामाजिक
छुआ छूत भाग __३
महक के गले से एक भी निवाला नहीं उतर रहा था।उस दिन उसे अपने मायके की बड़ी याद आईं। अन्दर से उसका दिल रो रहा था। भगवान को बार-बार गुहार लगा रही थी। जो औरत ख़ुद जननी है इस संसार की । महीना
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कवितालयबद्ध कविता
मायका
मायका मेरा मायका हां हां मेरा मायका
जिस मायके में मेरी किलकारियां कभी गूंजी थी।
जिस मायके में मेरे लिए कभी लोरिया गायी थी।
मायका मेरा मायका हां हां मेरा मायका।
गूंजती हुई किलकारियां गूंजती
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कहानीसामाजिक
छुआ छूत भाग _२
महक के सुसराल का घर बहुत छोटा था । तो उसकी सांस ने मंदिर अपनी रसोई में ही बनाया हुआ था। तभी
उन्हीं दिनों माता रानी के नवरात्रे आरम्भ हो गये। अभी
महक के पहले नवरात्रे थे अपने सुसराल
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कवितालयबद्ध कविता
लक्ष्य कैसा भी हो
पार तो उसको करना है
धूप में तप कर ही सही सोना तो बनना है
मुश्किलें कितनी भी हो पार तो उनको करना है
आग में ख़ुद को झोंक कर ही आसमान तो पाना है
लक्ष्य कैसा भी हो
पार तो उसको करना है
सुविचारप्रेरक विचार
मां का चेहरा
रोम रोम में बसा मां का चेहरा
मां जीवन का अनमोल खजाना
बिन बोले दुखों को पहचान लेती हैं
उलझी हुई सब परेशानियां सुलझा देती हैं
रातों को उठ उठ कर मेरी तकलीफ़ में मां तेरा जागना
मेरी एक आवाज़
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सुविचारप्रेरक विचार
कुछ लोग चाय की तरह होते हैं
जो दिलों में दीए की रोशनी की तरह जल
उठते हैं
__prabha Issar
कवितागजल
मैंने तो नहीं कहा था
यूं होंठों पर चुप्पी लगाने को
यूं दिल के दरवाज़े बंद करने को
यूं नाराज़गी से मुंह फेरने को
मैंने तो नहीं कहा था
यूं दूरियां बढ़ाने को
कवितागजल
थोड़ी दूर तो साथ चलों
हाथों में डाल हाथ चलों
मंजिलों को तो साथ मिलकर पार करों
उखड़े उखड़े मिज़ाज को तो छोड़ो
बातों को तो कहना सीखों
अपनी नाराज़गी को तो दूर करों
थोड़ी दूर तो साथ चलों
__prabha Issar
कवितानज़्म
उससे मिलने की खुशी मत पूछो
यादों के पिटारों का जैसे खुल जाना
चांद सितारों का धरती पर रोशनी बिखेरना
ओस की बूंदों का जैसे पत्तों पर ठहरना
आईने का जैसे मुझ से ही शरमा जाना
दिल के अरमानों का मचल मचल
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सुविचारअनमोल विचार
आज तो इतवार हैं
फुर्सत तो बेशुमार हैं
उमंग से भरा ये दिन
छुट्टी का आनंद उठाते
बच्चें और बड़े
अधूरे काम पूरे करते अपने अपने
आज तो इतवार हैं
फुर्सत तो बेशुमार हैं
__prabha Issar
कवितासोरठा
प्रिय क़लम
तेरे बिन तो मैं अधूरी हुं
तुझे पाकर तो मैं सम्पूर्ण हुं
तेरे बिन ना बाजूद मेरा कोई
तू पहचान है मेरी
प्रिय क़लम
तेरे बिन तो मैं अधूरी हुं
__prabha Issar
कविताबाल कविता
एक दौर था
एक दौर था मां हर ग़म मेरा लें लेती थी
बुरी नजरों से छुपा लेती थी वो दौर भी
क्या खूब था हर कोई अपना सा लगता था
मां का साथ छुटा हर एक रिश्ता टूटा एक दौर था
मां आंसुओ को भी नहीं आने देती थी मां
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कविताअन्य
ज़िन्दगी दौड़ हैं
ज़िन्दगी दौड़ हैं
सपनों को पूरा करने की होड़ हैं
थक कर रुक जाना
फिर उठ कर दौड़ना
ज़िन्दगी दौड़ हैं
सफलता पाकर भी ना रुकना
ज़िन्दगी दौड़ हैं
सपनों को पूरा करने की होड़ हैं
ज़िन्दगी
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कविताअन्य
पुराने दोस्त याद आएं
बचपन की यादों का आस-पास बिखर जाना
मैं तुमसे आगे तुम मुझ से आगे साइकिल की
रेस में जैसे अड जाना
दोस्ती यारी में हर तरह की कसम खाना
पुराने दोस्त आज फिर से याद आएं
पुराने दोस्त
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कवितानज़्म
तमाम दिनों की तरह
फिर से वो पल याद आ गये
गुजारें थे जो पल तेरे साथ
आज फिर से याद आ गये
फिर से हसरतों ने दिल के दरवाज़े
पर दस्तक दी है
तमाम दिनों की तरह
फिर से वो पल याद आ
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कवितागीत
तुम हमसे मिलें ऐसे
जैसे भंवरे कलियों से मिलते हैं
जैसे मुरझाईं हुईं कलियां रोज़ खिलती है
जैसे धागों में मोतियों की माला पिरोते हैं
जैसे पर्वतों पर बर्फ पिघलती है
जैसे समंदर से लहरें टकरातीं
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कविताबाल कविता
बचपन की बातें
बड़ी याद आती है
किस्से वो कहानियां
बेफिक्र सा वो बचपन
पीपल के वृक्षों के नीचे लुकाछिपी का वो खेल
वो मिट्टी का खेल ,वो बारिश का खेल
खेल खेल में एक दूसरे से झगड़ना
झट से एक दूसरे को
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कविताअन्य
कहीं खो जाना है
अब तो तेरा हो जाना है
तेरी सांसों में डुब जाना है
तुझे बस अपना बनाना है
कहीं खो जाना है
__prabha Issar
कवितागीत
खुशनुमा शाम हैं
तू मेरे साथ है
हाथों में हाथ है
तारा रम पम पम
__prabha Issar
कवितानज़्म
दिल पर ज़रा हाथ रख दो
नज़रों से ज़रा बात कर लो
ख्वाहिशों को ज़रा पूरा कर दो
रास्तों पर चलना ज़रा आसान कर दो
दिल पर ज़रा हाथ रख दो
____prabha Issar
कवितानज़्म
तुम और मैं जैसे
बारिश की बूंदों की ओस की तरह
जलते हुए दीए की लोह की तरह
तुम और मैं जैसे
बुनते हुए सपनों की डोर की तरह
तुम और मैं जैसे
दीया और बाती की तरह
____prabha Issar
कविताबाल कविता
मंजिलें मिल जाएगी
उठो मेरे प्यारे प्यारे बच्चों
मंजिलें ये रास्ते में सूर्य की पहली किरण
खिल खिलाते ये फूल रंग बिरंगी तितलियां
सब है तुम्हारे लिए
उठो मेरे प्यारे प्यारे बच्चों
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कविताअतुकांत कविता
जरुरी तो नहीं
जरुरी तो नहीं मैं अपना हर लम्हा
हाथ से जाने दूं
ग़म तनहाई अंधेरे ख़ामोशी
जरुरी तो नहीं
उलझनें सब से सुलझाता फिरू
जुबां पर आये हुएं लफ्ज़ जुबां में ही
रुक जाते
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कवितानज़्म
तुम्हारे प्यार की बारिश
में दिल की बगिया खिली सी रहती हैं
तेरे साथ से मैं जी उठती हु
तुझे सांसों में मैं भर लेती हुं
तेरे प्यार की बारिश में मेरा
तन-मन भींगा सा रहता है
तुम्हारे प्यार की बारिश में
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गजल
तुम्हारा ख्याल जैसे
आतीं हुईं हवाओं का आकर मुझे छू जाना
बारिश की बूंदों का आकर छू जाना
तुम्हारा ख्याल जैसे
तेरा मेरे ख्वाबों में आकर मुझे इस क़दर
बेकरार सा कर जाना
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कविताछंद
शब्द जानते हैं
क्षण भर में अपने मायने समझा जातें हैं
अगर बरसते हैं तो दिल को छनी कर देते हैं
अगर सम्मान देते हैं तो आसमान में बिठा
देते हैं
शब्द जानते हैं
चाहें
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कवितागजल
चलों लम्हें चुराते हैं
दूर कहीं चले जाते हैं
मोहब्बत के फूल उगाते हैं
दूनिया की नजरों से छुप जाते हैं
हर एक लम्हा जी लेते हैं
लम्हों से लम्हें चुराते हैं
चलों
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कविताबाल कविता
मेरी प्यारी मां
मां हर ग़म मेरा लें लेती थी
बुरी नजरों से छुपा लेती थी
हर कोई अपना सा लगता था
मां का साथ छुटा
हर एक रिश्ता टूटा
मां आंसुओ को कभी ना आने देती थी
मां बनकर
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कवितादोहा
सचमुच आज तो
आज तो आंखें नम हो गई
इंसान की इंसानियत कम हो गई
क्यों आज का इंसान सिर्फ अपने
लिए ही सोच रहा
सचमुच आज तो
आंखें नम हो गई
__prabha Issar
कविताअन्य
बहुत कोशिश की मैंने
कुछ अपनों को पाने की
बीच की दूरियां मिटाने की
रिश्तों को टूटने से बचाने की
बरसों की दूरियां मिटाने की
भाई को भाई से आपस में मिलाने की
बहुत कोशिश की मैंने
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कविताबाल कविता
एक ज़रुरी बात
हिस्से मेरे भी आई थी
मां ने मुझे कभी बतलाई थीं
मां ने अपने अनुभवों से समझाई थी
कभी उत्सुकता से मैंने भी जानी थी
जीवन में उलझनों में फस जाओ तो
उलझनों से उभरना भी
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कवितानज़्म
ज़रा सी रोशनी भी
अब तेरे आने की आहट को
महसूस करती है
ज़रा सी रोशनी भी
अब हर लम्हा याद दिलाती हैं
--Prabha Issar
कविताअन्य
मैंने क्या बिगाड़ा था
दो पल सुकून से जीना चाहता था
बच्चों के साथ दो पल मुस्कुराना चाहता था
दो गज ज़मीन के बंटवारे ने
मेरे भी टुकड़े टुकड़े कर दिए
इस बंटवारे ने मेरे प्यार , त्याग ,
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