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Section | Genre | Rank |
---|---|---|
कविता | बाल कविता | |
कविता | बाल कविता | |
कहानी | बाल कहानी | 5th |
London is the capital city of England.
कविताअतुकांत कविता
क्षितिज जाने
कितनी दूर है उसकी जमीं
कितना करीब है उसका आसमां
नदी पहचाने
राग धाराओं का
कैसे ठिठक ठिठक कर शोर करना
प्रभा की सूक्ष्म रेखाओं का
अंबर में बिखर यों
ज्योति पुंज सा प्रखर हो आशातीत
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कविताअतुकांत कविता
तुम जबाव दोगे ?
हां ..........तुम जबाव दोगे ?
किसी अपने की
सवालों भरी नजर का
किसी अपने की चाहतों के बंधनों का
तुम इतने कठोर पाषाण भी नहीं
फिर भी क्या तुम जबाव नहीं दोगे?
सत्य..... क्या तुम जबाव नहीं दोगे
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कविताअतुकांत कविता
कर लीजिए
कभी उस
रेत को भी
मुट्ठी में कैद
जो फिसल जाया करती है
जबरन ही
ज़िंदगी के समान
खोल दीजिए
फिर कभी
उस मुठ्ठी को भी
जिससे
आज़ाद हो जाएं
ज़िंदगी भी
रेत के समान
#Sobhit_thakre
कविताअतुकांत कविता
" दोपहर की धूप
जिसने ओढ़ रखी थी चादर
अपने ही गमों की
कभी कराहता
कभी हुंकार भरता
फिर दूर क्षितिज
में लालिमा लिए
अस्त हो जाता
सांझ को इंतजार
करता हुआ
एक -एक क्षण
तड़पता
फिर डूब जाता
अपने ही गमों
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कविताअतुकांत कविता
समेटे रहती हूं मैं अपने में
निराशाओं के फूल
जो चुभते है
लेकिन अहसास कराते हैं
कि मैं कुछ खास हूं .....!
चाहे दूर हूं आशाओं की किरणों से
लेकिन संवेदना के पास हूं ....!
समेटे रहती हूं मैं अपने में
कुंठित
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कविताअतुकांत कविता
इंसानों की दुनिया में
तुम जिसे अपना बता रही थी
वो कभी तुम्हारा था ही नही
उस पर बंदिश लगी है अपनी ही मुक्ति की
और तुम हिस्सा हो ही नहीं
उसके निकेतन मन की
उसकी आदतों की
उसके समाज की
न तुम शामिल हो
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कविताअन्य
अपने से न कभी बातें करते ,
धूल को अपने मे समेटे रहते ।
सूखे पत्ते उसकी खिड़की से टकराते ,
कीड़े मकोड़े उसमे अपना घर बनाते ।
तिनका तिनका जमा करती यहाँ ,
चिड़िया बुनती अपना नीड़ वहाँ ।
दीवारें ताकती रहती
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कविताअतुकांत कविता
ये उदास -उदास सी आँखे
कभी चंचल -चपल मृगनयनी समान थीं
गहराई के बादलों सेआज घिरी हुई
कल तक तो प्रसन्नता से भरी हुई थीं
टूटे ख़्वाबों का बोझ तले सिसकती हुई
कल तक जो सुनहरी आभा से सराबोर थीं
उन्हें इनकी
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कविताअतुकांत कविता
परछाईयाँ अगर बोल सकतीं
तो मैं उनसे जरूर पूछती
क्या तुम भी मेरी तरह
मन मस्तिष्क में उठने वाले ज्वार भाटो में
घिरी रहती हो......
अवसाद के आँगन में बैठ कर
क्या तुमने भी अपने भावों को
धूप में सुखाए है
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कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक, लघुकथा, बाल कहानी
एक टोला या कस्बा कहे ,जहाँ घनघोर गरीबी ,
दरिद्रता ,और लाचारी छाई थी। शिक्षा और स्कूल
क्या है ? किसलिए हैं?किसके लिए है?इससे क्या
लाभ? इन प्रश्नों के उत्तर से अनजान अपनी
रोजी रोटी कमाने में व्यस्त
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हम जब भी निराश होते हैं हमारे शिक्षक हमारे गुरु हमारे माता पिता आशा की लौ हमारे जीवन में जगा जाते हैं।
जी ,बिल्कुल
कहानीहास्य व्यंग्य, लघुकथा, बाल कहानी
बाल साहित्य -कहानी
"क्या बताऊँ"
☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️
यह कहानी बच्चों के लिए हास्य व्यंग्य के लिए लिखी गई हैं । यह पूरी तरह काल्पनिक हैं । कहानी में कुछ पात्र हैं ,जिनसे आपका परिचय कराते हैं ।
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कविताअतुकांत कविता, लयबद्ध कविता
अपने से न कभी बातें करते ,
धूल को अपने मे समेटे रहते ।
सूखे पत्ते उसकी खिड़की से टकराते ,
कीड़े मकोड़े उसमे अपना घर बनाते ।
तिनका तिनका जमा करती यहाँ ,
चिड़िया बुनती अपना नीड़ वहाँ ।
दीवारें ताकती
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कविताबाल कविता, लयबद्ध कविता, बाल कविता
"मिट्टी के आँगन"
🌿🕊️🕊️🐾🍃
कितने मधुर थे वो दिन ,
सुरमई शाम में कोमल थे सबके मन ।
थी जहाँ पेड़ों की शीतल छांव ,
समरता का राग गाता था मेरा गाँव ।
छोटे -छोटे घरों के आगे वो मिट्टी के आंगन ,
सच्चाई सादगी
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कविताबाल कविता, बाल कविता
एक बार आसमान में बादलों ने किया विचार
क्यों ना कुछ समय हम बदल लें अपना व्यवहार
हम सब भी तो करते हैं कितना काम
अब करना चाहिए हमें भी भरपूर आराम
तय हो गया अब नहीं बरसेंगे
हम भी आज से करेंगे विश्राम
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कविताबाल कविता, लयबद्ध कविता, बाल कविता
🐦बाल मनुहार🐦
रानी गौरैया के बच्चे चार ,
खेलते- कूदते मेरे घर द्वार ।
जब वो चुगते हैं दानी पानी ,
मैं नहीं पहुँचाती उनको हानि ।
फुदक -फुदक कर डाली -डाली ,
मेरे मन को को देते खुशहाली ।
मन करता उनको
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कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक, लघुकथा, बाल कहानी
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
सब्जियों के ठेले पर बैठा नरेंद्र आने -जाने वाले लोगों को देख रहा था ।आज उसने सब्जी मंडी से ताजी -ताजी सब्जियां खरीद कर लाया था । नरेंद्र 14 वर्ष का बालक था । पढ़ाई के साथ वह अपने परिवार
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कविताअतुकांत कविता
कैसे गुल खिलेंगे
अपने अंधाधुंध विकास और प्रगति को
बढ़ती बिगड़ती चाल को थोड़ा सा विराम दीजिए ।
बचे रहेंगे तो इसी जहाँ के
किसी कोने में फिर मिल जाएंगे ।
धरती को स्वर्ग फिर बनाएंगे।
जो एक बार कर दिया
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कवितालयबद्ध कविता, गीत
जिंदगी मिली मुझे इक तेरे ही साथ से
चलना यू ही साथ मेरे
छोड़ न देना कही हाथों को हाथ से
मेरे ख्वाबों का आशियाना तू हैं
मेरे गीतों का सफर सुहाना भी तू हैं
साथ तेरा इतना क्यों भाए मुझे
तेरे आगे अब
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कविताअतुकांत कविता
कविताएं और कविताएं
अन्तरह्र्दय के अनगिनत भावों को समेटे हुए
भाव जो सागर समान गहरे
नदियों समान चंचल
झरनों समान उत्साहित
पर्वत समान कठोर
फूलों समान कोमल
चाँदनी समान शीतल
धरती समान पवित्र
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कहानीसामाजिक, लघुकथा, बाल कहानी
सुनहरी मनु
मनु कक्षा 7 में पढ़ती है । विद्यालय से घर आते ही अपना बैग एक तरफ फेंक कर वह अपनी माँ राधा को ढूंढ रही थी , माँ बरामदे में बैठी हाथों में सुफ़ा लिए अनाज झाड़ रही थी । मनु पीछे से आकर अपने दोनों
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कविताअतुकांत कविता
पिछले दिनों की चिंता के बाद आज
बोझ जो सीने पर ही नहीं
मेरे मस्तिष्क की गहराई में भी समाया था
उतार कर फेंकते ही
गहन सुकून महसूस हुआ
दबाए रखा था जिसने मेरे व्यक्तित्व को
हो गई थी मेरी ही नजरों में
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कविताअतुकांत कविता
अल्फाज़ों को जोड़कर
रंग भरा उनमें
भावनाओं का
कि इन्हें ही देखकर
जग उठता है
हर एक ख्बाव
मेरी तमन्नाओं का
दस्तक सुनाई पड़ती है
खट्टी -मीठी आहटें भी
साथ लाती एक अहसास नया
महकती फ़िज़ा को देखकर
लग रहा
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कविताअतुकांत कविता
मेरी कविताएँ
अन्तरह्र्दय के अनगिनत भावों को समेटे हुए
भाव जो सागर समान गहरे
नदियों समान चंचल
झरनों समान उत्साहित
पर्वत समान कठोर
फूलों समान कोमल
चाँदनी समान शीतल
धरती समान पवित्र
आकाश समान
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कविताअतुकांत कविता
अनगिनत प्रश्न जो उपस्थित है
मानवता की राह में खोजते अपने उत्तर
अक़्सर दस्तक देते हैं
मेरे अपने सामाजिक आवरण को
आँखे भींचें ,
सिर झुकाएं ,
मौन शैली में
रोटियां सेंकते ,
जलील होते ,
भेड़ चाल में
शामिल
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कविताअतुकांत कविता
मन जो ख्वाहिशों का जंगल है
इस जंगल अभ्यंतर
कभी मनमौजी मंगल है
तो कभी रौद्र रूपी दंगल है
आन खड़ी होती निज द्वार
अंगड़ाई लिए ख्वाहिशें नई
न भेदे हालात
न देखे दिन -रात गति
भ्रमर सी करती गुंजायमान कभी
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