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Sahitya Arpan - सोभित ठाकरे
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सोभित ठाकरे

'सोभित ठाकरे'

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    Section Genre Rank
    कविता बाल कविता First
    कविता बाल कविता Second
    कहानी बाल कहानी 5th

    कविताअतुकांत कविता

    इससे उजले प्रतीक नहीं

    • Added 10 months ago
    Read Now
    • 89
    • 3 Mins Read

    क्षितिज जाने
    कितनी दूर है उसकी जमीं
    कितना करीब है उसका आसमां
    नदी पहचाने
    राग धाराओं का
    कैसे ठिठक ठिठक कर शोर करना
    प्रभा की सूक्ष्म रेखाओं का
    अंबर में बिखर यों
    ज्योति पुंज सा प्रखर हो आशातीत
    Read More

    इससे उजले प्रतीक नहीं ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    इन्तजार

    • Added 1 year ago
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    • 45
    • 4 Mins Read

    जिसे कभी रहा नहीं अपना ध्यान
    सारी सुध बुध ना कोई भान
    लौट आओ देखो छाने लगी बहार
    अब और कितना करूं मैं इन्तजार
    ये वन विपिन नदी पर्वत पहाड़
    और शीतल बयार रही है तुझे पुकार
    गई वो शरद अब है बसंत बहार
    अब
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    इन्तजार ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    चाहता हूं

    • Added 1 year ago
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    • 114
    • 3 Mins Read

    कुछ बदलाव करना चाहता हूं
    आज से पहले जो ना कर सका
    वो बात करना चाहता हूं
    बैचेनी है दिल में
    तो इस बैचेनी से मिलना चाहता हूं
    मिलकर अपने वजूद से
    लड़ना चाहता हूं
    लड़कर जीतना चाहता हूं
    जीत कर तुमको
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    चाहता हूं ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    ये अहसास

    • Added 1 year ago
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    • 99
    • 6 Mins Read

    #ये_अहसास

    तुम कभी शांत सी
    कभी अशांत भी
    कभी चंचल
    तो कभी स्थिर और गंभीर भी
    तुम्हारी मुग्धता ,
    लब्धता
    से आकर्षण ही नही
    थोड़ा - थोड़ा मोह भी
    ये अहसास उद्भव हो कर
    चिर परिचित जान पड़ता है
    लेकिन अस्थायी
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    ये अहसास ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    प्रश्नचिह्न

    • Added 1 year ago
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    • 109
    • 4 Mins Read

    तुम जबाव दोगे ?
    हां ..........तुम जबाव दोगे ?
    किसी अपने की
    सवालों भरी नजर का
    किसी अपने की चाहतों के बंधनों का
    तुम इतने कठोर पाषाण भी नहीं
    फिर भी क्या तुम जबाव नहीं दोगे?
    सत्य..... क्या तुम जबाव नहीं दोगे
    Read More

    प्रश्नचिह्न ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    हवा

    • Added 1 year ago
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    • 119
    • 2 Mins Read

    उड़ाके हवा ले गई
    कहां से कहां ले गई
    आखिर क्या ले गई
    उम्मीदें
    हौसले
    या
    सैलाब उमड़ा था
    जो इस दिल में
    चेतन अचेतन मन में
    आखिर क्या ले गई
    उड़ाके हवा ले गई
    मीठी यादें
    सुनहरे पल
    या
    अवसाद के कण
    जो
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    हवा ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    रेत और ज़िंदगी

    • Added 1 year ago
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    • 102
    • 1 Mins Read

    कर लीजिए
    कभी उस
    रेत को भी
    मुट्ठी में कैद
    जो फिसल जाया करती है
    जबरन ही
    ज़िंदगी के समान

    खोल दीजिए
    फिर कभी
    उस मुठ्ठी को भी
    जिससे
    आज़ाद हो जाएं
    ज़िंदगी भी
    रेत के समान
    #Sobhit_thakre

    रेत और ज़िंदगी ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 1 year ago

    lajawab

    सोभित ठाकरे1 year ago

    Thank you

    कविताअतुकांत कविता

    अकड़

    • Added 1 year ago
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    • 50
    • 1 Mins Read

    किसी को
    किसी के
    दर्द की सहानुभूति
    हो ना हो
    लेकिन
    दर्द जरूरी है
    प्रेम के लिए
    जितना गहरी
    अनुभूति प्रेम की
    उतनी ही
    अकड़ दर्द की
    #Sobhit_thakre

    अकड़ ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    दोपहर की धूप

    • Added 1 year ago
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    • 104
    • 2 Mins Read

    " दोपहर की धूप
    जिसने ओढ़ रखी थी चादर
    अपने ही गमों की
    कभी कराहता
    कभी हुंकार भरता
    फिर दूर क्षितिज
    में लालिमा लिए
    अस्त हो जाता
    सांझ को इंतजार
    करता हुआ
    एक -एक क्षण
    तड़पता
    फिर डूब जाता
    अपने ही गमों
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    दोपहर की धूप,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    ए अजनबी

    • Added 1 year ago
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    • 109
    • 2 Mins Read

    ए अजनबी
    पंछियों की तरह तू आजाद था
    कल भी
    आज भी
    तेरी आज़ादी का ये मतलब नहीं
    कि तेरे रंग बदलने के अंदाज़ को
    हर बार देखती रहूं ।
    अब तेरे पँखो का रंग का आभास है मुझे
    कितने सुंदर और कितने कुरूप है ।
    भविष्य
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    ए अजनबी ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    मोड़

    • Added 1 year ago
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    • 51
    • 2 Mins Read

    जीवन मे कितने ही मोड़ आते हैं
    लेकिन हर एक अंतिम मोड़ पर आकर
    ठहर जाता है
    इस मोड़ से वे जाते हैं
    एक बार फिर अपने अतीत की सुनहरी
    यादों में 
    कड़वे अनुभवों में
    समस्त इन्द्रियाँ जब तक शून्य न हो जाये
    पड़ावों
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    मोड़ ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    क्योंकि मैं खास हूं

    • Edited 2 years ago
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    • 147
    • 3 Mins Read

    समेटे रहती हूं मैं अपने में
    निराशाओं के फूल
    जो चुभते है
    लेकिन अहसास कराते हैं
    कि मैं कुछ खास हूं .....!
    चाहे दूर हूं आशाओं की किरणों से
    लेकिन संवेदना के पास हूं ....!
    समेटे रहती हूं मैं अपने में
    कुंठित
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    क्योंकि मैं खास हूं ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    तुम हो ही नही

    • Edited 2 years ago
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    • 179
    • 3 Mins Read

    इंसानों की दुनिया में
    तुम जिसे अपना बता रही थी
    वो कभी तुम्हारा था ही नही
    उस पर बंदिश लगी है अपनी ही मुक्ति की
    और तुम हिस्सा हो ही नहीं
    उसके निकेतन मन की
    उसकी आदतों की
    उसके समाज की
    न तुम शामिल हो
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    तुम हो ही नही ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता, बाल कविता, बाल कविता

    गिल्लू

    • Edited 3 years ago
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    • 152
    • 3 Mins Read

    गिल्लू मैं प्यारी गिलहरी
    उछल -कूद करती हूँ
    कभी जमीन पर तो
    कभी पेड़ो पर रहती हूँ

    जहाँ था मेरा आशियाना
    वो पेड़ पर बना घोंसला प्यारा
    काट दिया इंसानों ने
    वो पेड़ और जंगल सारा

    फिर भी मैंने न हार मानी
    इंसानों
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    गिल्लू,<span>अतुकांत कविता</span>, <span>बाल कविता</span>, <span>बाल कविता</span>
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    कविताअन्य

    दरवाजे बन्द मिलते हैं

    • Edited 3 years ago
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    • 196
    • 3 Mins Read

    अपने से न कभी बातें करते ,
    धूल को अपने मे समेटे रहते ।

    सूखे पत्ते उसकी खिड़की से टकराते ,
    कीड़े मकोड़े उसमे अपना घर बनाते ।

    तिनका तिनका जमा करती यहाँ ,
    चिड़िया बुनती अपना नीड़ वहाँ ।

    दीवारें ताकती रहती
    Read More

    दरवाजे बन्द मिलते हैं,<span>अन्य</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    ये उदास-उदास सी आँखे

    • Edited 3 years ago
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    • 299
    • 3 Mins Read

    ये उदास -उदास सी आँखे
    कभी चंचल -चपल मृगनयनी समान थीं
    गहराई के बादलों सेआज घिरी हुई
    कल तक तो प्रसन्नता से भरी हुई थीं
    टूटे ख़्वाबों का बोझ तले सिसकती हुई
    कल तक जो सुनहरी आभा से सराबोर थीं
    उन्हें इनकी
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    ये उदास-उदास सी आँखे,<span>अतुकांत कविता</span>
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    शिवम राव मणि

    शिवम राव मणि 3 years ago

    बहुत सुंदर

    सोभित ठाकरे3 years ago

    धन्यवाद सर

    कविताअतुकांत कविता

    परछाईयाँ अगर बोल सकती

    • Edited 3 years ago
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    • 157
    • 2 Mins Read

    परछाईयाँ अगर बोल सकतीं
    तो मैं उनसे जरूर पूछती
    क्या तुम भी मेरी तरह
    मन मस्तिष्क में उठने वाले ज्वार भाटो में
    घिरी रहती हो......
    अवसाद के आँगन में बैठ कर
    क्या तुमने भी अपने भावों को
    धूप में सुखाए है
    Read More

    परछाईयाँ अगर बोल सकती,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Poonam Bagadia

    Poonam Bagadia 3 years ago

    सुंदर अभिव्यक्ति...👌

    सोभित ठाकरे3 years ago

    धन्यवाद मैम

    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    बहुत सुन्दर रचना

    सोभित ठाकरे3 years ago

    आभार सर

    कविताअतुकांत कविता, हाइकु

    खेल

    • Edited 3 years ago
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    • 173
    • 1 Mins Read

    चलो खेल खत्म हुआ
    हाँ जी खेल
    दोस्ती का
    इश्क का
    उम्मीदों का
    बहानों का
    ज़िन्दगी का .....
    अबकुछ शेष नही
    जो कुछ शेष है वह स्मृतियां मात्र है
    जिसमे कोई आज भी टूट रहा है
    घुट रहा है ..!!

    खेल,<span>अतुकांत कविता</span>, <span>हाइकु</span>
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    कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक, लघुकथा, बाल कहानी

    अंत या आरंभ

    • Edited 3 years ago
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    • 157
    • 13 Mins Read

    एक टोला या कस्बा कहे ,जहाँ घनघोर गरीबी ,
    दरिद्रता ,और लाचारी छाई थी। शिक्षा और स्कूल
    क्या है ? किसलिए हैं?किसके लिए है?इससे क्या
    लाभ?  इन प्रश्नों के उत्तर से अनजान अपनी
    रोजी रोटी कमाने में व्यस्त
    Read More

    अंत या आरंभ,<span>सामाजिक</span>, <span>प्रेरणादायक</span>, <span>लघुकथा</span>, <span>बाल कहानी</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    हम जब भी निराश होते हैं हमारे शिक्षक हमारे गुरु हमारे माता पिता आशा की लौ हमारे जीवन में जगा जाते हैं।

    सोभित ठाकरे3 years ago

    जी ,बिल्कुल

    कहानीहास्य व्यंग्य, लघुकथा, बाल कहानी

    क्या बताऊँ

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 127
    • 17 Mins Read

    बाल साहित्य -कहानी

            "क्या बताऊँ"
    ☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️

    यह कहानी बच्चों के लिए हास्य व्यंग्य के लिए लिखी गई हैं । यह पूरी तरह काल्पनिक हैं । कहानी में कुछ पात्र हैं ,जिनसे  आपका परिचय कराते हैं ।
    Read More

    क्या बताऊँ,<span>हास्य व्यंग्य</span>, <span>लघुकथा</span>, <span>बाल कहानी</span>
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    कविताबाल कविता, लयबद्ध कविता, बाल कविता

    सूरज

    • Edited 3 years ago
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    • 154
    • 2 Mins Read

    किरणों की वो पहने पगड़ी ,
    चेहरे पर लेकर लाली तगड़ी ।
    पूर्व  दिशा से पश्चिम को जाए ,
    हर दिन गगन में फेरा लगाए ।
    सारे जग के तिमिर को हरता ,
    घर-घर में  उजियारा करता ।
    रुकता नही , नित चलता रहता ,
    हमें नियमबद्धता
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    सूरज,<span>बाल कविता</span>, <span>लयबद्ध कविता</span>, <span>बाल कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    bhut khub

    कविताबाल कविता, लयबद्ध कविता, बाल कविता

    बूढ़ा भगत

    • Edited 3 years ago
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    • 278
    • 3 Mins Read

    बूढ़े भगत की सुनो कहानी
    रखता था वो भीतर कपटी मुँह पर मीठी वाणी
    बैठ सरोवर पर लगा संतो सा पाठ सुनाने
    बातों से लगा मछलियों को भरमाने
    मछलियाँ थी भोली -भाली और छोटी बड़ी
    फंस गई उसके जाल में खड़ी -खड़ी
    एक
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    बूढ़ा भगत,<span>बाल कविता</span>, <span>लयबद्ध कविता</span>, <span>बाल कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    lajawab

    कविताअतुकांत कविता, लयबद्ध कविता

    बन्द दरवाजे

    • Edited 3 years ago
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    • 176
    • 3 Mins Read

    अपने से न कभी बातें करते ,
    धूल को अपने मे समेटे रहते ।

    सूखे पत्ते उसकी खिड़की से टकराते ,
    कीड़े मकोड़े उसमे अपना घर बनाते ।

    तिनका तिनका जमा करती यहाँ ,
    चिड़िया बुनती अपना नीड़ वहाँ ।

    दीवारें ताकती
    Read More

    बन्द दरवाजे,<span>अतुकांत कविता</span>, <span>लयबद्ध कविता</span>
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    कविताबाल कविता, लयबद्ध कविता, बाल कविता

    मिट्टी के आँगन

    • Edited 3 years ago
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    • 314
    • 6 Mins Read

    "मिट्टी के आँगन"

    🌿🕊️🕊️🐾🍃
    कितने मधुर थे वो दिन ,
    सुरमई शाम में कोमल थे सबके मन ।
    थी जहाँ पेड़ों की शीतल छांव ,
    समरता का राग गाता था मेरा गाँव ।
    छोटे -छोटे घरों के आगे वो मिट्टी के आंगन ,
    सच्चाई सादगी
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    मिट्टी के आँगन,<span>बाल कविता</span>, <span>लयबद्ध कविता</span>, <span>बाल कविता</span>
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    कविताबाल कविता, बाल कविता

    बादल और किसान

    • Edited 3 years ago
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    • 231
    • 5 Mins Read

    एक बार आसमान में बादलों ने किया विचार
    क्यों ना कुछ समय हम बदल लें अपना व्यवहार
    हम सब भी तो करते हैं कितना काम
    अब करना चाहिए हमें भी भरपूर आराम
    तय हो गया अब नहीं बरसेंगे
    हम भी आज से करेंगे विश्राम
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    बादल और किसान,<span>बाल कविता</span>, <span>बाल कविता</span>
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    कविताबाल कविता, लयबद्ध कविता, बाल कविता

    गौरैया के बच्चे

    • Edited 3 years ago
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    • 188
    • 2 Mins Read

    🐦बाल मनुहार🐦

    रानी गौरैया के बच्चे चार ,
    खेलते- कूदते मेरे घर द्वार ।
    जब वो चुगते हैं दानी पानी ,
    मैं नहीं पहुँचाती उनको हानि ।
    फुदक -फुदक कर डाली -डाली ,
    मेरे मन को को देते खुशहाली ।
    मन करता उनको
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    गौरैया के बच्चे,<span>बाल कविता</span>, <span>लयबद्ध कविता</span>, <span>बाल कविता</span>
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    कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक, लघुकथा, बाल कहानी

    विस्थापन

    • Edited 3 years ago
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    • 184
    • 13 Mins Read

    विस्थापन


    सीवन के समीप बांध बनकर तैयार था , उसके नजदीक ही झाड़ियां और छोटे पौधों के साथ पेड़ो की कतारें लहरा रही थीं , मुनमुन इन्हीं में से एक पेड़ पर कठिन परिश्रम से तिनका-तिनका चुन -चुनकर अपना नीड़
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    विस्थापन,<span>सामाजिक</span>, <span>प्रेरणादायक</span>, <span>लघुकथा</span>, <span>बाल कहानी</span>
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    कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक, लघुकथा, बाल कहानी

    जिम्मेदारी

    • Edited 3 years ago
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    • 137
    • 14 Mins Read

    🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿

    सब्जियों के ठेले पर बैठा नरेंद्र आने -जाने वाले लोगों को देख रहा था ।आज उसने सब्जी मंडी से ताजी -ताजी सब्जियां खरीद कर लाया था । नरेंद्र 14 वर्ष का बालक था । पढ़ाई के साथ वह अपने परिवार
    Read More

    जिम्मेदारी,<span>सामाजिक</span>, <span>प्रेरणादायक</span>, <span>लघुकथा</span>, <span>बाल कहानी</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    कैसे गुल खिलेंगे ?

    • Edited 3 years ago
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    • 97
    • 5 Mins Read

    कैसे गुल खिलेंगे

    अपने अंधाधुंध विकास और प्रगति को
    बढ़ती बिगड़ती चाल को थोड़ा सा विराम दीजिए ।
    बचे रहेंगे तो इसी जहाँ के
    किसी कोने में फिर मिल जाएंगे ।
    धरती को स्वर्ग फिर बनाएंगे।
    जो एक बार कर दिया
    Read More

    कैसे गुल खिलेंगे ?,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कवितालयबद्ध कविता, गीत

    जिंदगी मिली मुझे

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 157
    • 4 Mins Read

    जिंदगी मिली मुझे इक तेरे ही साथ से
    चलना यू ही साथ मेरे
    छोड़ न देना कही हाथों को हाथ से

    मेरे ख्वाबों का आशियाना तू हैं
    मेरे गीतों का सफर सुहाना भी तू  हैं
    साथ तेरा इतना क्यों भाए मुझे
    तेरे आगे अब
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    जिंदगी मिली मुझे,<span>लयबद्ध कविता</span>, <span>गीत</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    कविताएं और कविताएं

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 112
    • 6 Mins Read

    कविताएं और कविताएं
    अन्तरह्र्दय के अनगिनत भावों को समेटे हुए
    भाव जो सागर समान गहरे
    नदियों समान चंचल
    झरनों समान उत्साहित
    पर्वत समान कठोर
    फूलों समान कोमल
    चाँदनी समान शीतल
    धरती समान पवित्र
    Read More

    कविताएं और कविताएं,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कहानीसामाजिक, लघुकथा, बाल कहानी

    सुनहरी मनु

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 211
    • 63 Mins Read

    सुनहरी मनु

    मनु कक्षा 7 में पढ़ती है । विद्यालय से घर आते ही अपना बैग एक तरफ फेंक कर वह अपनी माँ राधा को ढूंढ रही थी , माँ बरामदे में बैठी हाथों में सुफ़ा लिए अनाज झाड़ रही थी । मनु पीछे से आकर अपने दोनों
    Read More

    सुनहरी मनु,<span>सामाजिक</span>, <span>लघुकथा</span>, <span>बाल कहानी</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    अंधेरे का आकर्षण

    • Edited 3 years ago
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    • 155
    • 3 Mins Read

    पिछले दिनों की चिंता के बाद आज
    बोझ जो सीने पर ही नहीं
    मेरे मस्तिष्क की गहराई में भी समाया था
    उतार कर फेंकते ही
    गहन सुकून महसूस हुआ
    दबाए रखा था जिसने मेरे व्यक्तित्व को
    हो गई थी मेरी ही नजरों में
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    अंधेरे का आकर्षण,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    gazab

    कवितालयबद्ध कविता

    दर्द

    • Edited 3 years ago
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    • 168
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    दर्द गहराता गया
    कोई चुपके -चुपके मेरे
    जख्मों को सहलाता गया...!
    न वो भोर हुई
    जिसमें मेरे दर्द की दवा मिले
    सुलकते भावों में मैं
    अपने आप को बहलाता गया....!!

    दर्द,<span>लयबद्ध कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    बहुत खूब

    सोभित ठाकरे3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    मेरी तमन्नाओं का

    • Edited 3 years ago
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    • 144
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    अल्फाज़ों को जोड़कर
    रंग भरा उनमें
    भावनाओं का
    कि इन्हें ही देखकर
    जग उठता है
    हर एक ख्बाव
    मेरी तमन्नाओं का
    दस्तक सुनाई पड़ती है
    खट्टी -मीठी आहटें भी
    साथ लाती एक अहसास नया
    महकती फ़िज़ा को देखकर
    लग रहा
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    मेरी तमन्नाओं का,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    वाह क्या खूब लिखा है आपने

    सोभित ठाकरे3 years ago

    सादर आभार

    कविताअतुकांत कविता

    अस्तित्व

    • Edited 3 years ago
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    • 182
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    पेड़ो को
    लताओं को
    झुरमुट में खिलते फूलों को
    इनसे उपजी हरियाली को
    धरा पर बिखरी खूबसूरती को
    मुझसे न छीनों
    हो जाऊँगी निष्प्राण मैं
    मत रोकों बहती हवाओं को
    है मुझमें माँ सी ममता और प्यार पिता सा
    मर्मस्पर्शी
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    अस्तित्व,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत सुंदर रचना

    सोभित ठाकरे3 years ago

    धन्यवाद जी

    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    लाजावाब

    सोभित ठाकरे3 years ago

    धन्यवाद जी

    कविताअतुकांत कविता

    मेरी कविताएं

    • Edited 3 years ago
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    • 170
    • 5 Mins Read

    मेरी कविताएँ
    अन्तरह्र्दय के अनगिनत भावों को समेटे हुए
    भाव जो सागर समान गहरे
    नदियों समान चंचल
    झरनों समान उत्साहित
    पर्वत समान कठोर
    फूलों समान कोमल
    चाँदनी समान शीतल
    धरती समान पवित्र
    आकाश समान
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    मेरी कविताएं,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    बेमिसाल बेहिसाब

    सोभित ठाकरे3 years ago

    धन्यवाद जी

    कविताअतुकांत कविता

    सवालों के बेहतरीन जवाब

    • Edited 3 years ago
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    • 182
    • 2 Mins Read

    अनगिनत प्रश्न जो उपस्थित है
    मानवता की राह में खोजते अपने उत्तर
    अक़्सर दस्तक देते हैं
    मेरे अपने सामाजिक आवरण को
    आँखे भींचें ,
    सिर झुकाएं ,
    मौन शैली में
    रोटियां सेंकते ,
    जलील होते ,
    भेड़ चाल में
    शामिल
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    सवालों के बेहतरीन जवाब ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    बेहद लाजवाब

    कविताअतुकांत कविता

    संवेदनाएँ

    • Edited 3 years ago
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    • 226
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    ह्रदय से मर रही हैं
    वे संवेदनाएँ
    जो होती थी
    मानवीय आधार
    पहचान कराती थी कि
    हम मानव है
    श्रेष्ठतम है
    क्षण -क्षण प्रति क्षण
    घटता जा रहा है
    मूल्य मेरे मानवीय ह्रदय का
    घेरे जा रही है मुझे मेरी वेदनाएँ
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    संवेदनाएँ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    मन ख्वाहिशों का जंगल

    • Edited 3 years ago
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    • 247
    • 4 Mins Read

    मन जो ख्वाहिशों का जंगल है
    इस जंगल अभ्यंतर
    कभी मनमौजी मंगल है
    तो कभी रौद्र रूपी दंगल है
    आन खड़ी होती निज द्वार
    अंगड़ाई लिए ख्वाहिशें नई
    न भेदे हालात
    न देखे दिन -रात गति
    भ्रमर सी करती गुंजायमान कभी
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    मन ख्वाहिशों का जंगल,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    बहुत खूब मैम

    सोभित ठाकरे3 years ago

    धन्यवाद जी

    कविताअतुकांत कविता

    ढलती धूप

    • Edited 3 years ago
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    • 115
    • 1 Mins Read

    हर दिन ढलती धूप के संग
    ढलने लगी है मेरी आशाएं
    वो आशाएं
    जो थी इंसान को इंसान
    कहलाने की एक अदद कोशिश
    कल फिर पहली किरण की आभा में
    मैं जिंदा करुँगी
    जो ढलने लगी है
    ढलती धूप के संग ..!!

    ढलती धूप,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    लाजावाब

    सोभित ठाकरे3 years ago

    धन्यवाद जी