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"रहती"
कविता
अभिलाषा
स्त्री झील सी
तुम्ही बताओ
संवेद से संवेदनाएँ
आती रहती हैं
आती रहती है
रूह आसमान में रहती है
मैं कविता हूँ...!
संवेद से संवेदनाएं
ये उदास-उदास सी आँखे
क्योंकि मैं खास हूं
तेरी यहाँ पर याद किसे रहती है
विसाले-हबीब की बशर सदा हमको रहती आस है
*आब -ए-हफ़त-दरिया की प्यास*
अधिकांश होते हैं गुमराह
बेचैन रहती है रात हमारी
मसर्रतें हयात से ख़फा रहती हैं
क़ुदरत हमारी तस्वीर ए हयात तराशती रहती है
कब्र किसीकी कभी होती कहीं आबाद नहीं
चाहत नहीं रहती कुछ कहने की
मेरे नुक़सान से तुझको नफा क्या है
मुफ़लिसी से ही रहती है कुर्बत ग़रीब की
मुसीबतें खुशियों पर तारी रहती हैं
कहानी
आत्मग्लानि
लिफ्ट
"अपनेपन की खुशबू"
मुकाबला 💐💐
" वक्त के अनुसार " 💐💐
" बेबी.-चांदनी " 🍁🍁
लेख
टूटती आस
" चाय भी क्या चीज़ है "
संस्मरण
एक दूजे के लिए
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