कवितानज़्म
जबतब हबीब को मेरे मुझसे कोई गलतफ़हमी रही है,
उसके तारीफों के कसीदे पढेहैं के तुमसा कोई नहीं है!
रूठे यार को मनाने के लिए हर बार बात यही कही है,
कि हाँ मैं ही गलत हूँ हर - बार की तरह तू ही सही है!
माफी मान लेनेसे कोई छोटे बाप का नहीं हो जाता है,
मग़र बशर फिर भी वोह जो चाहता है होता वही है!
©️✍️ #बशर
Dr.N.R.Kaswan