कविताअन्य
भाग्य का तुक्का
ज़िन्दगी भले रुक रुक कर चल रही है
मगर इम्तिहान लेने में कोई आनाकानी
नहीं करती है,
भाग्य मन मर्जी से लिख भी रही है तो
मिटा भी रही है,समझ से परे हर चाल
इसकी हमें लगती है,
जानते नहीं भाग्य है भी या हमसे हमारी
ज़िन्दगी तुक्का ही लगवायें जा रही है,
सोचती क्या है कराती क्या है जाने कौन
कौन सी राह पर हमें चला देती है,
मुश्किल बड़ा लगता है अक्सर हालातों
को समझ पाना,
कब कैसा सरल या कठिन इम्तिहान
सामाने हमारे रख दें,
पार करना जैसे अक्सर नामुमकिन सा
लगता है,
तरुणा शर्मा तरु
उत्तर प्रदेश नगरी 🇮🇳