कवितानज़्म
आने लगे हैं रोजो-शब मैखाने लोग
कुछ जाने और कुछ अनजाने लोग!
प्याले छोड़ कर लगे हैं पिलाने लोग
आंखों ही से आंखों को पैमाने लोग!
अजीब नशा इन नशीली आंखों का
बिन पीये लगे हैं येह छटपटाने लोग!
नादाँ कोईनहीं मयकशों की भीड़ में
शुमार हैं समझदार और सयाने लोग!
मयके भर प्याले पर प्याले पी पीकर
अपने-अपने सपने लगे सजाने लोग!
तसव्वुर -ए - जानाँ किये हुए बैठे हैं
लिए हुए अपने दिल के वीराने लोग!
सपन-परी से प्रणयके तसव्वुर में सब
लगे वरमाला प्यालोंकी पहनाने लोग!
रोज यहाँपर आनेवाले ये दीवाने लोग
बनगए किस्से-कहानी अफ़्साने लोग!
© dr. n. r. kaswan "bashar" 🍁