कविताअन्य
"बंद पन्नो में कैद है
एक कविता मन की,
उड़ने को मचले जो
उन शोख़ तितलियों सी,
यादों की पथरीली जमीं पर
आड़ी तिरछी लकीरों सी,
झुकी आखों में उठते
"बेअदब" सवालों की,
आक्रोशित शब्दों से परे
हद में मिले है मुझे चंद ही,
मुमकिन है...खिल उठे शब्द
बिना किसी निगरानी,
अभिव्यक्त कर सकूँगी
या फिर से बन जाऊंगी
मैं "एक नजरबंद कैदी"..