कवितानज़्म
*होली में*
परदेशी आते हरबार होली में,
भर जाते हैं घर -बार होली में।
हिलमिल खेलें घुलमिल खेले,
सखा दोस्त सब यार होली में।
लालगुलाल हरेपीले सूखेगीले,
खेलें रंगों का त्यौहार होली में।
घर-आंगन और सहन-दलहन,
सजे रंगोली हर -द्वार होली में।
बालक बच्चे बड़े बूढे मिलकर,
खेलें सकल नर - नार होली में।
बजे चंगमृदंग गूंजे मृदुलधमाल,
हर-सू रंगों की बौछार होली में।
भांग धतूरा मीठे व्यंजन घरघर,
करते सब की मनुहार होली में।
सब जात धर्म के लोगों में प्यार,
गिर जाती है हर दीवार होली में।
© डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"