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होली मं - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

होली मं

  • 25
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*होली में*

परदेशी आते हरबार होली में,
भर जाते हैं घर -बार होली में।

हिलमिल खेलें घुलमिल खेले,
सखा दोस्त सब यार होली में।

लालगुलाल हरेपीले सूखेगीले,
खेलें रंगों का त्यौहार होली में।

घर-आंगन और सहन-दलहन,
सजे रंगोली हर -द्वार होली में।

बालक बच्चे बड़े बूढे मिलकर,
खेलें सकल नर - नार होली में।

बजे चंगमृदंग गूंजे मृदुलधमाल,
हर-सू रंगों की बौछार होली में।

भांग धतूरा मीठे व्यंजन घरघर,
करते सब की मनुहार होली में।

सब जात धर्म के लोगों में प्यार,
गिर जाती है हर दीवार होली में।

© डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"

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