कवितालयबद्ध कविता
#साहित्य_अर्पण_एक_अंतर्राष्ट्रीय_पहल🙏
#प्रदत्त विषय - होली
#विधा_काव्य
#शीर्षक_होली
🌹🪴🪴🌻🌻 होली 🌹🪴🪴🌻
असुर राज हिरण्यकश्यप था बड़ा बलशाली।
पा कर पुत्र रूप प्रह्लाद हुआ सौभाग्यशाली।।
खुद को भगवान वो नादान समझता था।
मद में चूर प्रजा पर अत्याचार करता था।।
नगरी में नारायण का नाम जो भी जपता।
राक्षस राज के कोप का भाजन वो बनता।।
पर नियति का खेल निराला खुद की ही संतान।
दिन रात बजाती नारायण - नारायण की तान।।
पुत्र प्रह्लाद मुख नारायण नारायण का जाप सुन।
क्रोध में हिरण्यकश्यप का खोल उठने लगता खून।।
कट्टर शत्रु विष्णु का नाम धरा से मिटाने के लिए ।
बहु विधि नाना यत्न किए पुत्र को हटाने के लिए ।।
कभी विष दिया कभी किया तलवार प्रहार।
पर्वत से फिंकवाया नाना विधि किया वार।।
ईश कृपया से बाल भी बांका न कर पाया ।
भ्राता प्रेम वशीभूत होलिका दर्प आगे आया।।
दर्प था अग्नि ना कुछ उसका बिगाड़ पाएगी।
ब्रह्मा जी से मिले वरदान को काम में लाएगी।।
चिता सजायी अंक प्रहलाद होलिका को बैठाया।
नारायण ने माया अपनी रचा प्रह्लाद बचाया।।
होलिका भस्म हुई प्रसन्न वदन प्रह्लाद बाहर आया।
शक्ति पर भक्ति की जीत हुई खुशी में होली मनाया।।
बहार आयी अच्छाई ने बुराई पर विजय पायी।
पाप मिटा सत्य ने असत्य को मात खिलायी।।
खुशियों के रंगों का यह त्योहार संदेश लाता।
काम क्रोध मद मोह तज प्रेम रंग बरसाता।।
जन मानस चहुॅं ओर उड़ाते गुलाल अबीर।
द्वेष मिटा इक-दूजे गले लगने होते अधीर।।
स्वरचित मौलिक कविता
उर्मिला यादव
मालड़ा(महेंद्रगढ़)
हरियाणा