कविताअतुकांत कविता
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महुआ. पलाश. सेमल से निखरी
धरती की ये अनुपम छटा
रितुराज. भी मोहित हो
धरती से मिलने आ पँहुचा
मदमस्त भ्रमर नें फूलों को
चुंबित किया मदहोश हुआ
खिल खिल कलियां इतराईं तो
खुशबू फैली दिशा दिशा
स्वागत है रितुराज पधारो
धरती का श्रृंगार करो
स्वप्न राज्य में करने को भ्रमण
प्रियतमा के संग चलो
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नमिता स्मृति