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कवितानज़्म
'बशर' दरबदर है मन इधर उधर है पाले हुए मन में फालतू का डर है। टूटी हुई कमर है झुका हुआ सर है फिरभी बाजुओं पे ख्वाहिशों के पर हैं। छोटा-सा सफ़र है दूर नहीं घर है सरल-सी डगर है गर हौसला मग़र है। @ "बशर"