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कवितानज़्म
बेहिस हुआ पड़ा सुकून यहाँ बेज़ार, मंदा पड़ गया है मसर्रतों का कारोबार! ऊरूज पे आगया ग़मों का व्यापार, हरसू लगा हुआ रंजो-मलाल का अंबार! #बशर