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दर्पण - Soni Gupta (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

दर्पण

  • 40
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दर्पण में छिपा, हर राज़ है बेहद गहरा,
चेहरे की नक़्काशी और लगा है पेहरा,

चाहे अब तुम बोलो या यूँ ख़ामोश रहो,
आइना दिखा रहा है हर राज का चेहरा ,

दिख जाता है छिपा हुआ हो कोई राज,
सच्चाई की मंज़िल है आईने का दरिया,

हर उस राज़ का खुला दरवाज़ा यही है,
सच का दिखा देता यह अदभुत नज़ारा।

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