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कवितानज़्म
किराए के मकान कभी कहीं घर नहीं हुआ करते काफ़िले के मुसाफ़िर हम -सफ़र नहीं हुआ करते मंज़िले -मक़्सूद ''बशर'' खुद तय करता है अपनी राह -ए-सफ़र मिलने वाले रहबर नहीं हुआ करते © "बशर" بَشَر 🍁