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कवितानज़्म
क़ज़ा हमें तेरे घर जानेतक जिंदा रहना है येह सफ़र गुज़र जाने तक जिंदा रहना है माना के कांटो से भरी है राहे हयात बशर मग़र मंज़िल पर जाने तक जिंदा रहना है #बशर