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किताबें पुकारती - Atul Aman (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

किताबें पुकारती

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कुछ यहां पड़ी है सजावट सी
कुछ पूजा की कोठरी से पुकारती
कुछ वहां बोरी में कबाड़ सी
तो कुछ अलमीरा से निहारती
आजा मृत्यु पथ के पथिक
किताबें पुकारती।

रोमांच का खेल और शब्दों का जाल है
किताबों  की दुनिया सच मूच बेमिशाल है
एक - एक शब्द लेखक गढ़ता है प्यार से
अनुभव उसके कभी जीत कभी हार के
उसकी आत्मा तुझे पुकारती
आजा मृत्यु पथ के पथिक
किताबें पुकारती ।

दुःख सुख क्षण - क्षण का खेल यहां
किताबों की दुनिया का कही मेल कहां।
एक बार जो लग गई आदत
फिर ना उतरी जायेगी
दुनिया का कोई और मनोरंजन
तुझे ना भाएगी।

वेदों का यहां ज्ञान मिले
जिसे तुझको मान मिले
मिले यहां ऋषि मुनि की वाणी का संग
बुद्ध पढ़, प्रबुद्ध बन
उपनिषद का ज्ञान जीवन संवारती
आजा मृत्यु पथ के पथिक
किताबें पुकारती।

जीवन के अंतिम पड़ाव में
क्या ले के जायेगा
अपनी नई पीढ़ी को बोल
क्या सिखलाएगा
दादा-दादी ,नाना-नानी
की कहानियां यही तो है मिलती
आजा मृत्यु पथ के पथिक
किताबें पुकारती।

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