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कवितानज़्म
राब्तोंको इस क़दर बेरुखी से देखनेपर आमादा है उसने भी रिश्तों को कभी संजीदगी से देखा होगा यूं ही कोई बेज़ार नहीं हो जाता है बशर जमाने में कुछतो हुआ होगा कभीतो शर्मिंदगी से देखा होगा @"बशर"