कवितानज़्म
शायर भी हम हैं
सुख़नवर भी हम हैं
सुख़नवरी के सफ़र में
कारवाँ के रहबर भी हम हैं
कांटे हैं ज्यादा
और फूल कम हैं
कलियों के हैं रखवाले
मंडराने वाले भ्रमर भी हम हैं
राही भी हम हैं
मंज़िल भी हम हैं
काफ़िला हमारा कम है
हमारे अपने हमसफ़र भी हम हैं
मुसलसल है चलना
मरहलों से है निकलना
जहां ठहर गए वही मंज़िल
हमारी अपनी रहगुज़र भी हम हैं
@"बशर"