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कागज़, किताब ओ कलम बचे - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

कागज़, किताब ओ कलम बचे

  • 22
  • 2 Min Read

हसरत -ओ -एहसास कम बचे,
हिस्से में अपने सिर्फ़ ग़म बचे!!

पर बचे ना ही वो परवाज बची,
ना वोह इरादे, वादे, क़सम बचे!!

निकलते - निकलते ये दम बचे,
येह क्या कम बचा कि हम बचे!!

सूखे शजर के जर्द पत्तों पर,
बहार - ए -चमन के अलम बचे!!

दर्द न पूछ इन सूखे दरख़्तों का,
कमनहीं के चमनमें क़लम बचे!!

आलमे-बेखुदी मेंभी सुख़न बचा,
कागज़, किताब ओ कलम बचे!!

~ dr.n.r.kaswan "bashar" 🍁

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