कवितानज़्म
हसरत -ओ -एहसास कम बचे,
हिस्से में अपने सिर्फ़ ग़म बचे!!
पर बचे ना ही वो परवाज बची,
ना वोह इरादे, वादे, क़सम बचे!!
निकलते - निकलते ये दम बचे,
येह क्या कम बचा कि हम बचे!!
सूखे शजर के जर्द पत्तों पर,
बहार - ए -चमन के अलम बचे!!
दर्द न पूछ इन सूखे दरख़्तों का,
कमनहीं के चमनमें क़लम बचे!!
आलमे-बेखुदी मेंभी सुख़न बचा,
कागज़, किताब ओ कलम बचे!!
~ dr.n.r.kaswan "bashar" 🍁