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कवितानज़्म
मोहब्बतो-ख़ुलूस के 'बशर' सरपरस्त अब कहाँ रहे, चमन में सब्ज शजर हर - भरे दरख़्त अब कहाँ रहे! तबियत से तरबियत होती नहीं अपनी औलाद की, यतीमों की करें परवरिश वोह हज़रत अब कहाँ रहे! © dr.n.r.kaswan "bashar"