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हर भरे दरख़्त अब कहाँ रहे - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

हर भरे दरख़्त अब कहाँ रहे

  • 37
  • 1 Min Read

मोहब्बतो-ख़ुलूस के 'बशर' सरपरस्त अब कहाँ रहे,
चमन में सब्ज शजर हर - भरे दरख़्त अब कहाँ रहे!

तबियत से तरबियत होती नहीं अपनी औलाद की,
यतीमों की करें परवरिश वोह हज़रत अब कहाँ रहे!

© dr.n.r.kaswan "bashar"

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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वो चांद आज आना
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