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कवितानज़्म
पल-पल छिन-छिन गुजारे थे गिन-गिन! आखिर ले ही आया पल जीने के ये दिन! रहा ये दुश्वार जीना फुरक़त में उन बिन! वस्ल -ए-यार में अब लम्हासा बीते हरदिन! © dr.n.r.kaswan "bashar"