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लम्हासा बीते हरदिन - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

लम्हासा बीते हरदिन

  • 85
  • 1 Min Read

पल-पल छिन-छिन
गुजारे थे गिन-गिन!

आखिर ले ही आया
पल जीने के ये दिन!

रहा ये दुश्वार जीना
फुरक़त में उन बिन!

वस्ल -ए-यार में अब
लम्हासा बीते हरदिन!

© dr.n.r.kaswan "bashar"

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