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कवितानज़्म
मयकदे में क्या रखा है मय-कशी में क्या नशा पैमाने झूमते ही रहते होता सुरा में अगर नशा! सफ़्फ़ाक चांदनी में है इतना नशा बशर कि ये चाँद सितारों की रौशनी में झूमती है कहकशाँ! डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" 🍁