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कवितानज़्म
बागबां के इख़्तियार में 'बशर' सिर्फ़ तरबियते-गुलो-गुलशन है किसी कैद से आजाद मग़र मुक़म्मल तौर से ख़ुश्बू-ए-चमन है @"bashar"