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कवितानज़्म
उदास-ओ-मायूस ना हो कि तेरीभी बसर होगी, लंबी तेरी शब-ए-ग़म की ये आख़री पहर होगी! आधा जग सोता है येह सूरज तब भी जगता है, जगने वालोंकी शब सोने वालों की सहर होगी! © डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" 🍁