कवितानज़्म
है रस्ता लम्बा और मंज़िल दूर
चलतेचलते हसरतें हुए काफ़ूर!
मुलाक़ातों काभी है अजब दस्तूर
मिलने से पहले हम हो गए दूर!
तूभी तन्हा मैं भी तन्हा फिरता हूँ
बे-वजह बे-मतलब बिना कसूर!
वस्ल-ए -अहबाब के लिए बेताब
दिल नाशाद मन सूना चश्मे-बेनूर!
उम्मीदों पर फिरगया पानी बशर
मसर्रतें सब हो गई हैं चकनाचूर!
© डॉ.एन.आर.कस्वाँ"बशर"