कवितागजल
वृत्त(बहर): स्त्रग्विणी
लगावली (वज़्न): गालगा (२१२)
आज की बात है, ख़िल रही चांदनी,
मैं तिरा राग हूं, तू मिरी रागिनी,
हाथ में दिल लिये, मैं तिरे सामने,
साथ है, पास है, बस यही यामिनी,
राज़ की बात मैं, बोल दूं आ ज़रा,
पास तू आ ज़रा, महजबीं कामिनी,
तू ज़रासा सही, मुस्क़ुरा दे अगर,
बैठता दिल यही, गिर चले दामिनी,
रोज़ जो क़त्ल हो, यूं तिरे हाथ से,
इस क़दर जुर्म ये, कौन दे ज़ामिनी,
ख़ातुनो को सभी, भा गये हम भले,
एक को मानते, बस तुम्हे नाज़नी,
© पार्थ
१४ फेब्रुवारी २०२४