कवितानज़्म
दरिया -ए -उम्र-ए-पीरी में रवानी नहीं आती,
लौटकर फिरसे हयात में जवानी नहीं आती!
इल्म-ओ-हुनर फिरभी सीखा जा सकता है,
कहानी सुख़नके फ़न की बनानी नहीं आती!
नानी दादी की लोरियाँ सुनकर सो तो जाते,
मां के आंचल जैसी नींद सुहानी नहीं आती!
है फ़रेब की दुनिया में झूठों का बोल -बाला,
सच्चे को औक़ात झूठी दिखानी नहीं आती!
होंठों पर प्यास लेकर समंदर पार करना है,
तिश्नालबी हम को मग़र छुपानी नहीं आती!
© dr. n.r.kaswan "bashar" 🍁