Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
यूंतो बशर अक़्सर हम किसीको कम देखते हैं जो किसीको नहीं देखता उसीको हम देखते हैं राह-ए-दरवेश-ओ-फ़कीरों केजो रहते मुंतज़िर राहे-दर हज़ार उसकी अहल-ए-करम देखते हैं © dr. n.r.kaswan "bashar" 🍁