कवितागजल
ऐ वतन !
तेरे हाथों की लकीरों से बदनसीबी को मिटा देंगे, देकर अपना लहू तेरी तकदीर हम संवार देंगे।
लगा है जो दाग तेरी पेशानी पर उसे भी हम, उस बदनुमा दाग को भी जड़ से हम मिटा देंगे।
तेरी आँखों से बहते हुए इन आंसुओं की कसम,
अब न तुझे रोने देंगे ,तेरे सारे आंसू सारे पी लेंगें ।
तेरा हुस्न और जवानी ना लौटा दे जब तक तुझे,
हम दीवाने ! चैन ओ सुकून से जी भी ना सकेंगे।
घात लगाकर जो बैठे है दुश्मन तेरी सरहद पर, ऐसे दुश्मनों की हम ईंट से ईंट बजाकर रख देंगे ।
चाहे हम किसी भी जाति.धर्म और प्रांत के हों वासी ,
ऐलान हो हम एक थे,हम एक हैं और हम एक रहेंगे।