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जख़्मे-जिगर सहलाने केलिए - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

जख़्मे-जिगर सहलाने केलिए

  • 84
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काफी नहीं इश्तियाक़ तमन्ना आरज़ू शौक़-ए-हयात दर्दे-दिल बहलाने केलिए
साथ इक हमनवा हमसाया हमसफ़र का चाहिए जख़्मे-जिगर सहलाने केलिए
© dr.n.r.kaswan "bashar" 🍁

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