कवितानज़्म
जरा हंसकर देखाकरो
कभी तो ख़ुशगवार मंज़र देखा करो!
बादलों को पानी देकर
कितना प्यासा है समन्दर देखा करो!
ऐब गैरों के देखने वालों
फ़ुर्सत होतो खुद के अंदर देखा करो!
किरदारे-जयचंद ही क्यूं
मिसाल-ए-फ़तह सिकंदर देखा करो!
सबा का काम है चलना
बहती हुई हवामें न बवंडर देखा करो!
© dr. n. r. kaswan "bashar" 🍁