Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
ज़हर के हो गए - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

ज़हर के हो गए

  • 56
  • 3 Min Read

खुदी से निकलकर यादों में खो गए
गांव से निकल कर शहर के हो गए

खेतों से छूटा रिश्ता घर के हो गए
घर से जो निकले सफ़र के हो गए

जख़्म भर गए मर्ज शिफ़ा हो गए
दर्दे-फुरक़त में हम पत्थर के हो गए

दिन बेचैन हुए रातें आवारा हो गईं
रोजोशब गए शामो-सहर के होगए

हयात -ए -मुस्त'आर हुई मुक़म्मल
घड़ी दोघड़ी पहर दो पहरके होगए

रास न आया सुकूने-क़ल्ब ऐ बशर
ज़हर खा- खाकर ज़हर के हो गए

© ✒️ डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" 🍁

logo.jpeg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg