कविताअतुकांत कवितालयबद्ध कविता
बेशक मेरे सजदे की एक ख्वाहिश अधूरी है
तुम्हारे चेहरे पर गुलाल की आजमाइश अधूरी है
आना जब पास तो हाथों को गुलाल से रंग लेना
मुस्कुराकर तुम मेरे गालों को अपने नाजुक हाथों से रंग देना
अपने सफेद कपड़े और गालों को लाल गुलाल से ढक लेना
मिलने से पहले खुले हुए बालों को तुम दुपट्टे से ढक लेना
जब मिलोगे तो पैरों तले फूलों की बेशुमार बारिश होगी
हां इस होली जब मिलोगे मेरे सजदे की अधूरी ख्वाहिश पूरी
होगी
बिना कुछ कहे बिना कुछ सुने सिर्फ रंगों से हमारी बात होगी
हमारे दिल के अल्फाजों की बात आंखों के मुलाकात से होगी
हां..इस होली जब मिलोगे...मेरे सजदे की अधूरी ख्वाहिश पूरी
होगी..!!