कवितागीत
शीर्षक बिना बताये
निश्चित कर कर्तव्यों को जिन के प्रति आश्वस्त रहा,
सहन किया पीड़ाओं को और नही कुछ मुंह से कहा,
न जाने क्या हुआ अचानक वे ही रिश्ता तोड़ गए,
बीच सफर में मुझे यहीं पर बिना बताए छोड़ गए,
रहा सोचता जीवन की उम्मीदों के वे पूरक हैं,
सुख की घड़ियां दुःख की बेला दोनों के संपूरक है,
पूरणता का हर पैमाना हँसकर वे ही तोड़ गए,
बीच सफर में मुझे यहीं पर बिना बताए छोड़ गए,
पाकर जिनको जीवन में एक उजाला आया था,
लेकर साथ जिन्हे कल तक मैं बाधाओं से टकराया था,
स्वयं आज मेरा दामन वे बाधाओं से जोड़ गए,
बीच सफर में मुझे यहीं पर बिना बताए छोड़ गए,
पल भर की मायूसी जिनकी हमको खलने लगती थी,
सी की भी आवाजें जिनकी हमको चुभने लगती थी,
न जाने क्यों मायूसी से वे रिश्ता मेरा जोड़ गए,
बीच सफर में मुझे यहीं पर बिना बताए छोड़ गए,
कह देते गर बात वो अपनी तो चुपके से सुन लेता,
दे देते गर चोट बताकर तो वह सब मैं सह लेता,
पर नहीं बताए कुछ भी मुझको दिल मेरा वो तोड़ गए
बीच सफर में मुझे यहीं पर बिना बताए छोड़ गए,
खैर रहें खुश वे जीवन में यह ही दुआ हमारी है,
उनकी खुशियों से ही जुड़ती खुशियां मेरी सारी हैं,
अपना क्या है चल ही लेंगे भले राह वे मोड़ गए,
बीच सफर में मुझे यहीं पर बिना बताए छोड़ गए।
अमलेन्दु शुक्ल
सिद्धार्थनगर उ०प्र०