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कवितानज़्म
मेहनतकश नसीबों के मोहताज नहीं होते निठल्लों के सिर पर कभी ताज नहीं होते उगतेहुए सूरजको सलाम करती है दुनिया बुलंदियों पर परिंदे बिन परवाज़ नहीं होते © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" 🍁